प्राचीन काल के मानव को अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए लिपि का आविष्कार करना पड़ा था। इसलिए हम कह सकते हैं कि लिपि ऐसे प्रतीक-चिह्नों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टिगोचर बनाया जाता है। सुनी या कही हुई बात केवल उसी समय और उसी स्थान पर उपयोगी होती है। किंतु लिपिबद्ध कथन या विचार काल की सीमाओं को लांघ सकते हैं। तो चलिए जानते हैं प्राचीन काल की ऐसी ही ‘खरोष्ठी लिपि’ के इतिहास के बारे में।
खरोष्ठी लिपि का चौथी-तीसरी शताब्दी ई.पू. में भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों में काफी प्रचलन था। खरोष्ठी को इंडो-आर्यन भाषा प्राकृत के एक रूप का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित किया गया था। वहीं उत्तरी पाकिस्तान, पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तर पश्चिमी भारत और मध्य एशिया में इसका व्यापक लेकिन अनियमित विस्तार हुआ।

खरोष्ठी के सबसे पहले पहचाने जाने वाले उदाहरण गांधार के क्षेत्र में स्थित हैं जो अशोका अध्यादेश ((मध्य तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) जो मानसेहरा और शाहबाज़गढ़ी के शहरों में स्थित हैं) में रिकॉर्ड (Record) किए गए हैं। भारतीय उत्तरपश्चिम के बाहर स्थित अशोक के शिलालेख ब्रह्मी लिपि में लिखे गए थे, लेकिन गांधार क्षेत्र की ओर ये शिलालेख खरोष्ठी लिपि का उपयोग करते हुए लिखे गए थे। चूंकि ब्रह्मी लिपि उत्तरपश्चिम के बाहर अधिकांश भारत में प्रख्यात थी, लेकिन खरोष्ठी इस क्षेत्र में प्रमुख रही और यहाँ अधिकांश शिलालेख खरोष्ठी में लिखे गए थे।

इसका उपयोग बैक्ट्रिया (Bactria), कुषाण साम्राज्य, सोगडिया और सिल्क रोड (Silk Road) में भी किया गया, जहाँ से मिले कुछ प्रमाण यह बताते हैं कि यह लिपि 7वीं शताब्दी तक खोतान और निया (शिनजियांग के दो शहर) दोनों शहरों में पाई जाती है। अल्पकालिक भारत-ग्रीक साम्राज्य की स्थापना के बाद गांधार में एक मुद्रा प्रणाली शुरू की गई थी, तब खरोष्ठी का उपयोग सिक्कों के शिलालेखों पर व्यापक रूप से किया गया था। सिक्कों में ग्रीक और प्राकृत दोनों में द्विभाषी शिलालेख थे, जो कभी-कभी ब्रह्मी या खरोष्ठी वर्णों के साथ लिखे जाते थे।

मार्च, 2005 में संस्करण 4.1 के प्रकाशन के साथ खरोष्ठी को यूनिकोड (Unicode) मानक में जोड़ा गया था। खरोष्ठी के लिए यूनिकोड मानक U+10A00-U+10A5F है। खरोष्ठी को ज़्यादातर दाएं से बाएं लिखा जाता है, लेकिन कुछ शिलालेख पहले से ही बाएं से दाएं दिशा को दर्शाते हैं जो बाद की दक्षिण एशियाई लिपियों के लिए सार्वभौमिक बन गई। खरोष्ठी में केवल एक स्वर शामिल होता है जो शब्दों में प्रारंभिक स्वरों के लिए उपयोग किया जाता है।

ब्रह्मी लिपि के बढ़ते प्रभाव से यह भारत के बाहर फैलती गई, और खरोष्ठी लिपि विशिष्ट स्थानों तक ही सीमित रह गई। चौथी शताब्दी ईस्वी तक, खरोष्ठी या तो विलुप्त हो गई थी या इसे अन्य क्षेत्रों में अन्य लेखन प्रणालियों द्वारा बदल दिया गया था। आज तक, कोई खरोष्ठी से उत्पन्न लिपियों की पहचान नहीं की गई है।